अलिफ लैला की प्रेम कहानी-57
अबुल हसन दरबार
के कक्ष के
अंदर जा कर
सिंहासन के समीप
इस प्रतीक्षा में
खड़ा हो गया
कि उसे सिंहासन
पर चढ़ाया जाए।
दो बड़े सरदारों
ने उस की
बाँह पकड़ कर
सहारा दिया और
उसे तख्त पर
बिठा दिया।
वह ज्यों ही तख्त
पर बैठा कि
चारों ओर से
सलामी की आवाजें
उठने लगीं। वह
यह जयघोष सुन
कर बड़ा प्रसन्न
हुआ। उस ने
अपने दाएँ-बाएँ
निगाह डाली तो
देखा कि राज्य
के बड़े-बड़े
सरदार सिर झुकाए
और हाथ बाँधे
खड़े हैं। उस
ने एक-एक
कर के सारे
सरदारों का अभिवादन
स्वीकार किया। फिर राज्य
का मंत्रि, जो
सिंहासन के पीछे
खड़ा था और
दरबार का इंतजाम
देख रहा था,
अबुल हसन के
सामने आया और
फर्शी सलाम करके
उसे दुआ देने
लगा, भगवान आप
को लाखों बरस
की उम्र दे
और
सदैव
अपनी कृपा आप
के ऊपर बनाए
रखे। भगवान करे
कि आप के
मित्र और शुभचिंतक
सुखी और आप
के शत्रु परास्त
रहें। यह सब
देख कर अबुल
हसन को पूर्ण
विश्वास हो गया
कि मैं स्वप्न
नहीं देखता, वास्तव
में खलीफा बन
गया हूँ।
फिर मंत्री ने उस
से कहा कि
महल के बाहर
सेना पंक्तिबद्ध खड़ी
है, आप उस
का निरीक्षण करें।
अबुल हसन सारे
सरदारों के साथ
बाहर गया और
उस ने एक
ऊँचे चबूतरे से
फौज की सलामी
ली। वह फिर
दरबार में वापस
हुआ और मंत्री
ने प्रजा के
आवेदन पत्र उस
के सामने पेश
किए। उनकी समझ
में जैसा आया
उसे वैसा ही
फैसला किया। फिर
मंत्री ने राज्य
के समाचार सुनाने
शुरू किए। अभी
यह समाचार पूरे
नहीं हुए थे
कि अबुल हसन
ने शहर के
कोतवाल को बुलाया।
वह आया तो
उसे अपनी गली
का नाम बता
कर कहा, तुम
सिपाहियों को ले
कर वहाँ जाओ।
वहाँ की मसजिद
में एक बूढ़ा
मुअज्जिन है। उसे
तलवे ऊपर करके
उन पर चार
सौ डंडे लगवाओ
और उस के
चार साथियों को
सौ कोड़े लगवाओ।
फिर उन सबों
को ऊँट पर
पीछे की ओर
मुँह करवा कर
नगर भर में
फिराओ ओर एलान
कराते जाओ कि
जो लोग अपने
पड़ोसियों को दुख
पहुँचाते हैं उनका
यही परिणाम है।
इस के बाद
पाँचों आदमियों को नगर
से निष्कासित करो।
कोतवाल ने जा
कर चुपके से
खलीफा से पूछा
तो उस ने
इसकी अनुमति दे
दी क्योंकि उसे
अबुल हसन पहले
से उन सभी
की दुष्टों की
बातें बता चुका
था। कोतवाल यह
आदेश पा कर
अबुल हसन की
गली में गया
और दरबार में
आ कर सूचना
दी कि मैं
ने खलीफा का
आदेश पूरा कर
दिया है। अबुल
हसन ने मुस्कुरा
कर उस से
कहा, हम तुम्हारी
मुस्तैदी से बहुत
खुश हुए। खलीफा
परदे के पीछे
बैठा हुआ यह
सब देख रहा
था और इस
तमाशे का आनंद
ले रहा था।
इस के बाद
अबुल हसन ने
आज्ञा दी, खजाने
से एक हजार
अशर्फियों का एक
तोड़ा ले जाया
जाए और उसी
गली में, जिस
में यह मुअज्जिन
था, रहनेवाले व्यक्ति
अबुल हसन की
माँ को दिया
जाए।